भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इनके जन्म के समय इनके पिता चाचा आदि जेल में थे यह देश के प्रति अपनी लगाओ लगाए रखते थे जब तक इन्होंने अपने प्राण ना गवाएं जब तक इन्होंने वंदे मातरम का नारा लगाए रखा वह मरते दम तक यह वदे मातरम का नारा देते रहे यह भारत के क्रांतिकारी स्वतंत्र सेनानी थे भगत सिंह पांच भाई थे सरदार जी से जब उनकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उन्होंने बताया कि लेनिन के जीवन का अध्ययन कर रहे हैं और वह अपनी मृत्यु से पहले इसे समाप्त करना चाहते हैं । जब जेल में एक पुलिसकर्मी पुष्प सोते हुए निकला कि भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को आज रात फांसी दी जाएगी जब जेल में कैदी पुलिसकर्मी से कहने लगे कि हमें उनके कमरे में से कपड़े एक आगे जूते आदि इनमें से एक समान दे दीजिए कि हम अपने पतियों को बता सके कि हम भी भगत सिंह के साथ किए थे जब भगत सिंह को वहां से ले जाया जा रहा था तो पंजाब के नेता सरदार भीमसेन सच्चर ने पूछा कि जब उन्होंने ऊंची आवाज से पूछा आप और साथियों ने consequence केस में आपने बचाओ क्यों नहीं किया तो उन्होंने बताया कि इंकलाबी को ही मरना ही होता है क्योंकि उनके मरने के बाद उनकी अभीयान मजबूत हो जाती है अदालत की अपील से नहीं भगत सिंह को किताबें पढ़ने का बहुत शौक था उन्होंने एक बार फौजी से कहा कि मुझे मेरे लिए किताब लेकर आओ वह किताबों से बहुत खुश रहते थे लेकिन उनको क्या पता था कि उनकी चिंकी शेर के पीछे ही निकलेगी उनकी कोटरी नंबर 14 में पक्की नहीं थी उसमें घास उगी हुई थी कमरे में इतनी जगह थी कि वह अकेले ही आ सकते थे और उनकी फांसी से 2 घंटे पहले उनके वकील प्राणनाथ नेता उनसे मिलने आए जब भगत सिंह ने वकील को देखा तो वह हंसते हुए उन्होंने उनका स्वागत किया और उन्होंने कहा कि आप मेरी लेबर स्ट्री की किताब लेकर आए हैं या नहीं सही उन्होंने कहा कि आप देश को कोई संदेश देना चाहते हैं तो भगत सिंह ने कहा कि मैं दो संदेश देना चाहता हूं साम्राज्यवाद मुर्दाबाद इंकलाब जिंदाबाद एक ने बताया कि जब हमें जेल से निकाला गया था भरत सरकार का ऑर्डर था कि हमें सरदार
भगत सिंह से पहले ही निकाल दिया जाए और हमसे पूछा गया कि क्या तुम भगतसिंह से मिलना चाहते हो तो हमें भगत सिंह की कोठी के पास ले जाया गया और इसे मिलाया गया