सुप्रीम कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के केस में सजा काट रहे एक पति की सजा कम कर दी है। ऐसा उसकी पत्नी की याचिका के आधार पर किया। दरअसल, पत्नी ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि वह अपनी मैरिड लाइफ को दोबारा जीना चाहती है। पति के साथ आगे की जिंदगी बिताना चाहती है।हमारे एक्सपर्ट हैं- जबलपुर से मध्यप्रदेश हाईकोर्ट केअदालत में दहेज का दावा जीतने के लिए आदर्श रूप से शादी के 7 साल के भीतर दहेज का मामला दायर किया जाना चाहिए । हालांकि लोग शादी के 7/10/15 साल बाद भी दहेज का मामला दर्ज करते हैं, लेकिन अगर दहेज का मामला शादी के 7 साल बाद भी है तो वे केस हार जाएंगे। एडवोकेट अशोक पांडे और सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट सचिन नायक।
सबसे पहले समझते हैं कि केस कितने तरह के होते हैं…
केस दो तरह के होते हैं
- समझौतावादी यानी कॉम्प्रोमाइज केस
- गैर-समझौतावादी यानी नॉन- कॉम्प्रोमाइज केस
समझौतावादी केस में पीड़ित व्यक्ति चाहे तो अपना केस कोर्ट से वापस ले सकता है। ऐसा गैर-समझौतावादी केस में नहीं किया जा सकता।अदालत में दहेज का दावा जीतने के लिए आदर्श रूप से शादी के 7 साल के भीतर दहेज का मामला दायर किया जाना चाहिए । हालांकि लोग शादी के 7/10/15 साल बाद भी दहेज का मामला दर्ज करते हैं, लेकिन अगर दहेज का मामला शादी के 7 साल बाद भी है तो वे केस हार जाएंगे।
सवाल- अच्छा तो फिर समझौतावादी केस क्या हाेता है?
जवाब- CrPC की धारा-320 के तहत एक चार्ट मौजूद है, जिसमें समझौतावादी अपराध के बारे में डिटेल में बताया गया है कि किन मामलों में शिकायत करने वाला केस वापस ले सकता है। इनमें कई ऐसे मामले हैं, जिनमें कोर्ट के बाहर समझौता हो सकता है और कोर्ट को CrPC की धारा-320 के तहत अर्जी दाखिल कर सूचित किया जाता है कि शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो चुका है, ऐसे में कार्रवाई रद्द की जाए। तब कोर्ट कार्रवाई रद्द कर देता कैसे के आसान तरीक नहीं है आपने मेरा समाज में देखा होगा कि जब लड़की की शादी होती हो तो कम से कम टीवी 4000000 रुपए दिए जाते हैं गरीब आदमी इतना पैसा खाते थे इसलिए भारत सरकार द्वारा यह बंद कर देना और दूसरे समझ में तो लोग दारु पी के अपने पतियों को मारते हैं क्योंकि देश के लिए और मेरी पत्नी होती रहती है और यह भी रोती रहती है उनके पास नहीं है वह कंप्लेंट करती है तो करके भेजती होती हैश्रद्धा मर्डर केस में एक के बाद एक नए खुलासे हो रहे हैं। इस कड़ी में एक सच और सामने आया है।अदालत में दहेज का दावा जीतने के लिए आदर्श रूप से शादी के 7 साल के भीतर दहेज का मामला दायर किया जाना चाहिए । हालांकि लोग शादी के 7/10/15 साल बाद भी दहेज का मामला दर्ज करते हैं, लेकिन अगर दहेज का मामला शादी के 7 साल बाद भी है तो वे केस हार जाएंगे। दरअसल, पहले श्रद्धा और आफताब मुंबई के वसई के रीगल अपार्टमेंट में किराये से रहते थे। फ्लैट को किराये पर लेते वक्त श्रद्धा और आफताब ने खुद को पति-पत्नी बताकर रेंट एग्रीमेंट बनवाया था। फ्लैट की मालकिन जयश्री पाटकर की मानें तो दोनों ने उनके एजेंट से कहा था कि परिवार के बाकी मेंबर्स भी साथ रहने आएंगे और वो दोनों पति-पत्नी हैं। वो कभी आफताब और श्रद्धा से नहीं मिलीभारतीय दंड संहिता की धारा 498 A दहेज से संबंधित धारा है। दहेज लेना और देना दोनों की अदालत में दहेज का दावा जीतने के लिए आदर्श रूप से शादी के 7 साल के भीतर दहेज का मामला दायर किया जाना चाहिए । हालांकि लोग शादी के 7/10/15 साल बाद भी दहेज का मामला दर्ज करते हैं, लेकिन अगर दहेज का मामला शादी के 7 साल बाद भी है तो वे केस हार जाएंगे। की श्रेणी में आता है। जब कभी पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग की जाए उसे दहेज कहा जाता है।दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।अदालत में दहेज का दावा जीतने के लिए आदर्श रूप से शादी के 7 साल के भीतर दहेज का मामला दायर किया जाना चाहिए । हालांकि लोग शादी के 7/10/15 साल बाद भी दहेज का मामला दर्ज करते हैं, लेकिन अगर दहेज का मामला शादी के 7 साल बाद भी है तो वे केस हार जाएंगे।हिंदू विवाह कानून, 1955 के तहत पति या पत्नी गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं। इसकी धारा 24 कहती है कि अगर पति या पत्नी के पास अपना गुजारा करने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत न हो तो वे इसके तहत अंतरिम गुजारा भत्ता और इस प्रक्रिया में लगने वाले खर्च की क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं।21- हिंदू विवाह कानून, 1955 के तहत पति या पत्नी गुजारा भत्ते का दावा कर सकते हैं। इसकी धारा 24 कहती है कि अगर पति या पत्नी के पास अपना गुजारा करने के लिए आय का कोई स्वतंत्र स्रोत न हो तो वे इसके तहत अंतरिम गुजारा भत्ता और इस प्रक्रिया में लगने वाले खर्च की क्षतिपूर्ति का दावा कर सकते हैं।2न्यायालय इस आवेदन में डिक्री पारित कर देगी। फिर भी पत्नी आप के साथ आ कर नहीं रहती है तो आप तलाक के लिए आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं। इस आवेदन पर आप को विवाह विच्छेद (तलाक) की डिक्री प्राप्त हो जाएगी। पत्नी सक्षम हो और अकारण ही वो आपके साथ ना रहना चाहती हो तो आप इससे बच सकते हैं।